संत की बातें सुनकर क्रूर राजा सुधर गया
Sant ki bate sunkar krur raja sudhar gya
एक अत्यंत निर्दयी और क्रूर राजा था। दूसरों को पीड़ा देने में उसे आनंद आता था। उसका आदेश था कि उसके राज्य में एक अथवा दो आदमियों को फांसी लगनी ही चाहिए। उसके इस व्यवहार से प्रजा बहुत दुखी हो गई थी।
एक दिन उस राजा के राज्य के कुछ वरिष्ठजन इस समस्या को लेकर एक प्रसिद्ध संत के पास पहुंचे और बोले- महाराज! हमारी रक्षा कीजिए। यदि राजा का यह क्रम जारी रहा तो नगर खाली हो जाएगा। संत भी काफी दिनों से यह देख-सुन रहे थे। वे अगले ही दिन दरबार में जा पहुंचे।
राजा ने उनका स्वागत किया और आने का प्रयोजन पूछा। तब संत बोले- मैं आपसे एक प्रश्न करने आया हूं। यदि आप शिकार खेलने जंगल में जाएं और मार्ग भूलकर भटकने लगें और प्यास के मारे आपके प्राण निकलने लगें, ऐसे में कोई व्यक्ति सड़ा-गला पानी लाकर आपको इस शर्त पर पिलाए कि तुम आधा राज्य उसे दोगे तो क्या तुम ऐसा करोगे? राजा ने कहा- प्राण बचाने के लिए आधा राज्य देना ही होगा।
संत पुन: बोले- अगर वह गंदा पानी पीकर तुम बीमार हो जाओ और तुम्हारे प्राणों पर संकट आ जाए, तब कोई वैद्य तुम्हारे प्राण बचाने के लिए शेष आधा राज्य मांग ले तो क्या करोगे? राजा ने तत्क्षण कहा- प्राण बचाने के लिए वह आधा राज्य भी दे दूंगा।
जीवन ही नहीं तो राज्य कैसा? तब संत बोले- अपने प्राणों की रक्षार्थ आप राज्य लुटा सकते हैं, तो दूसरों के प्राण क्यों लेते हैं? संत का यह तर्क सुनकर राजा को चेतना आई और वह सुधर गया।
सार यह है कि अपने अधिकारों का उपयोग लोकहित में और विवेक सम्मत ढंग से किया जाना चाहिए।