वो सोचो जो चाहते हो वो नहीं जो नहीं चाहते हो !
Vo socho jo chahte ho vo nahi jo nahi chahte ho
जब आप restaurant में खाने जाते हैं तो waiter से क्या कहते हैं ? “ मुझे एक कढाई पनीर , 2 garlic नान , और एक fried rice नहीं चाहिए ….” या फिर ,” मेरे लिए एक lime soda मत लाना ”
क्या आप ऐसे order देते हैं … कि मुझे ये -ये चीजें नहीं चाहियें . या ये बताते हैं कि आपको क्या -क्या चाहिए ??
Of course , हर कोई यही कहता है कि उसे क्या चाहिए , ये नहीं कि उसे क्या नहीं चाहिए … now suppose अगर हम waiter से कहते कि क्या नहीं चाहिए तो क्या वो हमारे मन की चीज ला कर दे पाता , क्या वो हमारे “नहीं चाहिए ” से ये interpret कर पाता कि हमें “ क्या चाहिए ”…नहीं कर पाता यही बात हमारी life में भी लागू होती है …ये ब्रह्माण्ड एक ऐसी अद्भुत जगह है जहाँ हमारी हर एक इच्छा पूरी हो सकती है.
कैसे ?
हमारी सोच से !
ये दरअसल एक law है जो किसी भी mathematical law की तरह perfect है , हम इसे law of attraction कहते हैं … इस बारे में मैं पहले भी बात कर चुका हूँ , इसलिए यहाँ मैं उन बातों को नहीं दोहराऊंगा …, बस आप इतना समझिये और मन में बैठा लीजिये कि आपकी सोच ही आपकी दुनिया का निर्माण करती है .
पर ऐसा है तो हर कोई वो क्यों नहीं पा लेता जो वो चाहता है ?
मुझे इसके दो basic reasons दिखते हैं :
हर कोई इस बात को लेकर clear नहीं है कि वो दरअसल चाहता क्या है।
और जिन्हें clear है वे इस बारे में प्रबलता से सोचते नहीं .
अगर आप पहले point पर ही अटकें हैं तो सबसे पहले इस बात की clarity लाइए कि आप चाहते क्या हैं ?एक बार जब आप इसे लेकर clear हो चुके हैं कि आप क्या चाहते हैं तो फिर बारी आती है उसे ब्रह्माण्ड से order करने की .
ब्रह्माण्ड से कैसे order कर सकते हैं ?
ब्रह्माण्ड से order करना बहुत आसान है …यहाँ हमारा order हमारी
सोच के through होता है …हम जो सोचते हैं उसे हमारा order मान लिया जाता है .
और यहीं हम order देने में वो गलती कर बैठते हैं जिसे हम restaurant में करने की सोच भी नहीं सकते !!
हम वो order नहीं करते जो हमें चाहिए बल्कि वो करते हैं जो नहीं चाहिए . बस यहाँ इतना सा अंतर है कि restaurant में waiter समझ जाता था कि जो नहीं चाहिए वो मत दो ….पर ब्रह्माण्ड इतना विशाल और शक्तिमान है कि वो बिना दिए नहीं रहता …उसे तो कुछ न कुछ देना है …इसलिए ब्रह्माण्ड “नहीं ” नहीं समझता।
जब आप लगातार सोचते रहते हैं कि “ कहीं पैसे कम ना पड़ जाएं “ तो दरअसल ब्रह्माण्ड को एक order दे रहे होते हैं जिसे वो इस तरह सुनता है ,” ये आदमी चाहता है की इसके पास पैसे कम पड़ जाएं ” और आपके जीवन में उसे हकीकत के रूप में ले आता है …आप पैसों की और भी कमी महसूस करने लगते हैं .
Friends, दरअसल हम images के through सोचते हैं . और ब्रह्माण्ड ये मान कर चलता है की जो इमेज हम देख या सोच रहे हैं वही हम अपनी लाइफ में चाहते हैं , और उसे वो हमारे लाइफ की reality बना देता है .
तो जब आप “ पैसे कम ना पड़ जाएं “ सोचते हैं तो …दिमाग में पैसे कम होने की इमेज बनती है …और इससे related feeling अन्दर पैदा होती हैं …..य़े सब इतनी तेजी से होता है कि may be आप इसे notice ना कर पाएं पर हमारा ये विचार ब्रह्माण्ड तुरंत catch कर लेता है और उसी के हिसाब से हमारी हकीकत बनाने में जुट जाता है .
Ok, तो आप ये तो समझ चुके होंगे कि आपको “पैसों की कमी ” वाली thought नहीं सोचनी चाहिए ,
क्योंकि ये तो वो चीज है जो आप नहीं चाहते हैं …आप तो इसका उल्टा चाहते हैं …” मेरे पास खूब पैसे हों ..”