Tenali Rama Hindi Story, Moral Story on “Santusht vyakti ke liye uphar”, ”सन्तुष्ट व्यक्ति के लिए उपहार” Hindi Short Story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

सन्तुष्ट व्यक्ति के लिए उपहार

 Santusht vyakti ke liye uphar

 

 एक दिन तेनाली राम बडी प्रसन्न मुद्रा में दरबार में आया। उसने बहुत अच्छे कपडे और गहने पहन रखे थे। उसे देख् कर राजा कॄष्णदेव राय बोले, “तेनाली, आज तुम बहुत प्रसन्न दीखाई दे रहे हो। क्या बात है?”

“महाराज कोई खास बात नहीं है।” तेनाली राम प्यार से बोला।

“नहीं आज मुझे तुम कुछ अलग लग रहे हो। वैसे एक बात है, जब तुम मुझे पहली बार मिले थे, तब तुम्हारा व्यक्तित्व बहुत साधारण था।”

तेनाली राम बोला, “महाराज, प्रत्येक व्यक्ति समय के साथ बदलता है। विशेषतः जब उसके पास थोडा बहुत धन भी हो। मैंने आपके द्वारा दिए गए उपहारों से काफी बचत कर ली है।”

राजा बोले, “तब तो तुम्हें अपनी बचत का कुछ भाग दूसरों को भी देना चाहिए।”

तेनाली राम बोला, “महाराज, अभी मैंने दूसरों को देने के लायक पर्याप्त बचत नहीं की है।”

यह सुनकर राजा ने तेनाली राम की दान न करने की प्रवॄति कि लिए उसे काफी लताडा। तेनाली राम ने जब देखा कि उसकी बात का राजा बुरा मान गए हैं तो उसने अपनी गलती स्वीकारकरते हुए महाराज से पूछा कि उसे क्या दान करना चाहिए।

” तेनाली, तुम एक भ्व्य घर बनवाओ और उसे दान दो, इससे तुम्हें प्रसन्न्ता होगी।” राजा ने कहा ।

तेनाली राम ने राजा की बात मान ली। अगले कुछ माह तक वह एक भ्व्य मकान बनवाने में व्यस्त हो गया। जब वह भ्व्य मकान बनकर तैयार हो गया तो तेनाली राम ने मकान के उपर एक तख्ती टॉग दी, जिस पर लिखा था, “यह घर उस व्यक्ति को दिया जाएगा, जो अपने जीवन में मात्र उतने में ही प्रसन्नता महसूस करता हो, जितना उसके पास है।”

कई लोगो ने उस तख्ती को पढा, परन्तु कोई भी मकान लेने नहीं आया। एक बार एक निर्धन व्यक्ति को उस घर के बारे में पता चला। उसने सोचा कि क्यों न वह उस मकान को प्राप्त करने की कोशिश करे। यह सोचकर वह तेनाली के घर पहुँचा उसने बाहर लगी त्ख्ती को बार-बार पढा। उसने सोचा सोचा कि लोग कितने मूर्ख हैं, जो इस मकान को लेने नहीं आ रहे। वह घर में गया और बोल, ” श्रीमान, मैंने घर के बाहर टँगी तख्ती को पढा हैं, मैं दावा करता हूँ कि मैं सबसे प्रसन्न व संतुष्ट व्यक्ति हूँ। अतः मैं इस मकान का अधिकारी हूँ।”

इस पर तेनाली राम हँसने और बोला, “यदि इस घर के बिना तुम प्रसन्न और संतुष्ट हो, तो फिर तुम्हें इस घर की क्या आवश्यकता है? और यदि तुम्हें आवश्यकता है तो फिर तुम्हारा दावा गलत है। क्योंकि अगर जो कुछ तुम्हारे पास है तुम उससे संतुष्ट हो, तो तुम इसे क्यों मॉगोगे?”

निर्धन व्यक्ति को अपनी भूल का आभास हो गया। उसके बाद उस मकान को मॉगने के लिए कोई नही आया। अन्त में तेनाली राम ने सारी कथा राजा को सुनाई। राजा बोले, “तुमने एक बार फिर अपनी बुद्धिमानी का परिचय दिया। परन्तु अब तुम उस मकान का क्या करोगे?”

“कोई शुभ दिन देखकर मैं उसमें गॄह-प्रवेश करुँगा।’ इस प्रकार एक बार फिर तेनाली राम ने राजा कॄष्णदेव राय को निरुत्तर कर दिया।

 

 

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