तेनाली का पुत्र
Tenali ka Putra
राजा कॄष्णदेव राय के महल में एक विशाल उधान था। वहॉ विभिन्न प्रकार के सुन्दर-सुन्दर फूल लगे थे। एक बार एक विदेशी ने उन्हें एक पौधा उपहार में दिया, जिस पर गुलाब उगते थे। बगीचे के सभी पौधों में राजा को वह पौधा अत्यन्त प्रिय था। एक दिन राजा ने देखा कि पौधे पर गुलाब की संख्या कम हो रही है। उन्हें लगा कि हो न हो, अवश्य ही कोई गुलाबों की चोरी कर रहा है। उन्होंने पहरेदारों को सतर्क रहने तथा गुलाबों के चोर को पकडने का आदेश दिया।
अगले दिन पहरेदारों ने चोर को रंगे हाथ पकड लिया। वह और कोई नहीं, तेनाली का पुत्र था। उस समय के नियमानुसार किसी भी चोर को जब पकडा जाता था तो उसे विजयनगर की सडकों पर घुमाया जाता था। अन्य लोगों की तरह तेनाली राम ने भी सुना कि उसके पुत्र को गुलाब चुराते हुए पकडा गया है। जब तेनाली राम का पुत्र सिपाहियों के साथ घर के पास से गुजर रहा था, तो उसकी पत्नी तेनाली से बोली, “अपने पुत्र की रक्षा के लिए आप कुछ क्यों नहीं करते?”
इस पर तेनाली राम अपने पुत्र को सुनाते हुए जोर से बोला, “मैं क्या कर सकता हूँ? हॉ यदि वह अपनी तीखी जुबान का प्रयोग करे, तो हो सकता है कि स्वयं को बचा सके।”
तेनाली राम के पुत्र ने जब यह सुना तो वह कुछ समझ नहीं पाया। वह सोचने लगा कि पिताजी की इस बात का आखिर क्या अर्थ हो सकता है? पिताजी ने जरुर उसे ही सुनाने के लिए यह बात इतनी जोर से बोला है। मगर तीखी जुबान के प्रयोग करने का क्या मतलब हो सकता है? यदि वह इसका अर्थ समझ जाए तो वह बच सकता है।
कुछ क्षण पश्चात उसे समझ में आ गया कि पिता के कहने का क्या अर्थ है? अपनी तीखी जुबान को प्रयोग करने का अर्थ था कि वह मीठे गुलाबों को किसी को दिखने से पहले ही खा ले। अब क्या था, वह धीरे-धीरे गुलाब के फूलों को खाने लगा। इस प्रकार महल में पहुँचने से पहले ही वह सारे गुलाब खा गया और सिपाहियों ने उस पर कोई ध्यान भी नहीं दिया।
दरबार में पहुंचकर सिपाहियों ने तेनाली राम के पुत्र को राजा के सामने प्रस्तुत किया और कहा, महाराज ! इस लडके को हमने गुलाब चुराते हुए रंगे हाथों पकडा।”
“अरे! इतना छोटा बालक और चोर।” राजा ने आश्चर्य से पूछा।
इस पर तेनाली राम का पुत्र बोला, ” महाराज, मैं तो केवल बगीचे से जा रहा था परन्तु आपको प्रसन्न करने के लिए इन्होंने मुझे पकड लिया। मुझे लगता है कि वास्तव में, ये स्वयं ही गुलाब चुराते होगें। मैंने कोई गुलाब नहीं चुराया। क्या आपको मेरे पास कोई गुलाब दिखाई दे रहा है? यदि मैं रंगे हाथो पकडा गया हूँ, तो मेरे हाथो में गुलाब होने चाहिए थे।”
गुलाबों का न पाकर पहरेदार अच्म्भित हो गए। राजा उन पर क्रोधित होकर बोले, “तुम एक सीधे-सादे बालक को चोर कैसे कह सकते हो? इसे चोर सिद्ध करने के लिए तुम्हारे पास कोई सबूत भी नहीं है। जाओ और भविष्य में बिना सबूत के किसी पर अपराधी होने का आरोप मत लगाना।”
इस प्रकार तेनाली राम का पुत तेनाली की बुद्धिमता से स्वतन्त्र हो गया।