Tenali Rama Hindi Story, Moral Story on “Tenali Ram aur Rajya me utsav”, ”राज्य में उत्सव” Hindi Short Story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

राज्य में उत्सव

 Tenali Ram aur Rajya me utsav

 एक बार राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबार में कहा, “नया वर्ष आरम्भ होने वाला है। मैं चाहता हूं कि नए वर्ष पर जनता को कोई नई भेंट दी जाए, नया तोहफा दिया जाए। आप बताइए, वह भेंट क्या हो? वह तोहफा क्या हो?”

महाराज की बात सुनकर सभी दरबारी सोच में पड़ गए। तभी मंत्री महोदय कुछ सोचकर बोले, “महाराज, नए वर्ष पर राजधानी में एक शानदार उत्सव मनाया जाए। देश-भर से संगीतकार, नाटक मडंलियां व दूसरे कलाकार बुलवाए जाएं और वे रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करें। जनता के लिए इससे बढ़कर नए वर्ष का उपहार और क्या हो सकता है?”

राजा कृष्णदेव राय को यह सुझाव बहुत पसन्द आया। उन्होंने मंत्री से पूछा, “कितना खर्च आ जाएगा इस आयोजन पर?” “महाराज, कोई खास ज्यादा नहीं, यही दस-बीस लाख स्वर्ण मुद्राएं ही खर्च होंगी।” मंत्री ने उत्तर दिया।

“इतना खर्च…कैसे?” राजा कृष्णदेव राय महामंत्री का उत्तर सुन कर चौंके। फिर मंत्री महोदय ने खर्च का ब्यौरा देते हुए कहा, “महाराज, हजारों कलाकारों के खाने-पीने और रहने का प्रबन्ध करना होगा। नई रंगशालाएं बनवाई जाएंगी। पुरानी रंगशालाओं की मरम्मत करानी होगी। शहर-भर में रोशनी और सजावट होगी। इन सब चीजों पर इतना खर्च तो हो ही जाएगा।”

मंत्री के इस ब्योरे पर राजपुरोहित और अन्य सभासदों ने भी हां में हां मिलाई। राजा कृष्णदेव राय इतने खर्च की बात सुनकर सोच में पड़ गए। उन्होंने इस बारे में तेनाली राम की राय ली। तेनाली राम ने कहा, “महाराज, उत्सव का विचार तो वास्तव में बहुत अच्छा है, मगर यह उत्सव राजधानी में नहीं होना चाहिए।” “क्यों?” राजा कृष्णदेव राय ने पूछा। दूसरे दरबारी भी तेनाली राम की ओर चिढ़कर देखने लगे।

“महाराज, उत्सव यदि केवल राजधानी में हो तो शेष राज्यों की जनता को उसका क्या आनन्द आएगा? गांव वाले अपना काम छोड़कर तो उत्सव देखने आएंगे नहीं। कलाकारों को राज्य के प्रत्येक गांव व कस्बे में जाकर जनता का मनोरंजन करना चाहिए। कलाकारों की कला के माध्यम से जनता अपनी संस्कृति, अपने इतिहास को जानेगी तथा कलाकार संस्कृति की धरोहर रखने वालों से परिचित होंगे साथ ही कलाकारों का स्वागत-सत्कार गांव वाले करेंगे।”

“तेनाली राम, तुम्हारी बात तो बिल्कुल ठीक है। इसके लिए जितना धन चाहो, खजाने से ले लो।”

“धन…मगर किसलिए! यह तो जनता स्वयं खर्च करेगी। उन्हीं के लिए तो यह उत्सव कर रहे हैं। इस उत्सव का नाम ‘मिलन मेला’ होगा। इस मेले में कलाकार जहां कहीं भी जाएंगे, उनके खाने-पीने और रहने का प्रबन्ध वे लोग बिना कहे कर देंगे। हां, आने-जाने का प्रबन्ध हम कर देंगे। इस तरह बहुत कम खर्च आएगा महाराज, मगर इस उत्सव (मिलन मेला) का आनन्द सभी उठाएंगे।

राजा कृष्णदेव राय को तेनाली राम की बात जंच गई। उन्होंने उत्सव का सारा काम तेनालीराम को सौंप दिया। आयोजन की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले मंत्री व अन्य सभासदों के चहरे उतर गए|

 

 

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