Hindi Poem of Amitabh Tripathi Amit “Meri gurbat ko mat napo“ , “मेरी गुर्बत को मत नापो ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मेरी गुर्बत को मत नापो
Meri gurbat ko mat napo

 

मेरी गु़र्बत को मत नापो
मुझे गु़र्बत से मत नापो
मैं जीवन की सही पहचान रहना चाहता हूँ

मेरी सनदों को मत नापो
मुझे सनदों से मत नापो
मैं अपने अह्द में ईमान रहना चाहता हूँ

मेरे ओहदे को मत नापो
मुझे ओहदे से मत नापो
मैं अदना सा बस इक इंसान रहना चाहता हूँ

मेरी शोहरत को मत नापो
मुझे शोहरत से मत नापो
मैं मुश्किल में भी इक मुस्कान रहना चाहता हूँ

मेरी ग़फ़्लत को मत नापो
मुझे ग़फ़्लत से मत नापो
मैं सब कुछ जान कर अंजान रहना चाहता हूँ

अगर तुम नाप सकते हो
तो मेरी आशिकी नापो
जुनूने-ज़िन्दगी नापो
जुरअिते-शायरी नापो

मेरी खुद्दार नज़रों में
कभी आसूदगी नापो
मईशत की तराजू पर
कभी नेकी-बदी नापो
अगर तुम नाप सकते हो

मिज़ाजे-अफ़सरी नापो
ज़मीरे-कमतरी नापो
हुकूमत के वज़ीरों की
कभी दानिशवरी नापो

अंधेरों के भवँर नापो
उजालो के कहर नापो
नफ़स में फैलता जाता
सियासत का ज़हर नापो
अगर तुम नाप सकते हो!

अगर यह काम मुश्किल है
तो मुझको यूँ ही रहने दो
मैं अपना वैद खुद ही हूँ
मुझे उपचार करने दो

मैं जीवन की सही पहचान रहना चाहता हूँ
मैं अपने अहद में ईमान रहना चाहता हूँ
मैं अदना सा बस इक इंसान रहना चाहता हूँ
मैं मुश्किल में भी इक मुस्कान रहना चाहता हूँ
मैं सब कुछ जान कर अंजान रहना चाहता हूँ

शब्दार्थ:
गु़र्बत = गरीबी, कंगाली; सनदों = प्रमाणों (प्रमाणपत्रों)
अह्द = प्रतिज्ञा, वचन; ग़फ़्लत = असावधानी, भूल
खुद्दार = स्वाभिमानी; आसूदगी = संतोष, तृप्ति;
मईशत = जीविका; दानिशवरी = बुद्धिमत्ता;
नफ़स = साँस; वैद = वैद्य

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