Hindi Poem of Amitabh Tripathi Amit “Prasad“ , “प्रसाद ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

प्रसाद
Prasad

 

जलती हैं हमारी हड्डियाँ
समिधा बन कर
हमारा ही श्रम बनता है

हविष्य
और प्रज्ज्वलित करते हैं उसे
हमारे ही श्रम-बिन्दु
घृत बन कर

पड़ता है, हमारे समर्पण का तुलसीदल
भोग की हर वस्तु में
लेकिन!

प्रसाद की कतार में
होते हैं सबसे बाद में

पहुँचते-पहुँचते जहाँ तक
हो जाता है रिक्त
थाल प्रसाद का।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.