Hindi Poem of Jagdish Gupt “ Apradh ki ibarat”,”अपराध की इबारत” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अपराध की इबारत

 Apradh ki ibarat

 

अपराध यूँ ही नहीं बढ़ता है

हर बच्चा

बूढ़ों की आँखों में

अपराध की इबारत

साफ़-साफ़ पढ़ता है।

वह इबारत

पानी की तरह

सतह पर

हमें अपना चेहरा दिखती ऐ,

और जहाँ भी गड्ढे देखती है

ठहर-ठहर जाती है।

उसमें एक बहाव है

और एक खिंचाव भी।

यह इबारत हमारी कृतज्ञ है

कि हम उसे मिटाते नहीं।

क़ैदी की तरह

कितना भी छटपटाएँ

अपने को

उसके घर से

मुक्त कर पाते नहीं।

समय की शिला पर

वरण-फूल नहीं

अब यही इबारत

लोहे की टाँकी से

लिख दी गई है,

ताकि जो भी इधर से गुज़रे

शर्म से मरे या न मरे

एक बार अपने को

अफ़लातून

ज़रूर अनुभव करे।

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