Hindi Poem of Nagarjun “Baraf padi hai“ , “बरफ पड़ी है” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बरफ पड़ी है

Baraf padi hai

बरफ़ पड़ी है

सर्वश्वेत पार्वती प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है

सजे-सजाए बंगले होंगे

सौ दो सौ चाहे दो-एक हज़ार

बस मुठ्ठी-भर लोगों द्वारा यह नगण्य श्रंगार

देवदारूमय सहस्रबाहु चिर-तरूण हिमाचल कर सकता है क्यों  कर अंगीकार

चहल-पहल का नाम नहीं है

बरफ़-बरफ़ है काम नहीं है

दप-दप उजली साँप सरीखी सरल और बंकिम भंगी मे

चली गईं हैं दूर-दूर तक

नीचे-ऊपर बहुत दूर तक

सूनी-सूनी सड़कें

मैं जिसमें ठहरा हूँ वह भी छोटा-सा बंगला है

पिछवाड़े का कमरा जिसमें एक मात्र जंगला है

सुबह-सुबह ही

मैने इसको खोल लिया है

देख रहा हूँ बरफ़ पड़ रही कैसे

बरस रहे हैं आसमान से धुनी रूई के फाहे

या कि विमानों में भर-भर कर यक्ष और किन्नर बरसाते

कास-कुसुम अविराम

ढके जा रहे देवदार की हरियाली को अरे दूधिया झाग

ठिठुर रहीं उंगलियाँ मुझे तो याद आ रही आग

गरम-गरम ऊनी लिबास से लैस

देव देवियाँ देख रही होंगी अवश्य हिमपात

शीशामढ़ी खिड़कियों के नज़दीक बैठकर

सिमटे-सिकुड़े नौकर-चाकर चाय बनाते होंगे

ठंड कड़ी है

सर्वश्वेत पार्वती-प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है

बरफ़ पड़ी है

 

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