Hindi Poem of Nander Sharma “  Sathi chand”,”साथी चाँद” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

साथी चाँद

 Sathi chand

 

मैंने देखा, मैं जिधर चला,

मेरे सँग सँग चल दिया चाँद!

घर लौट चुकी थी थकी साँझ;

था भारी मन दुर्बल काया,

था ऊब गया बैठे बैठे

मैं अपनी खिड़की पर आया।

टूटा न ध्यान, सोचता रहा

गति जाने अब ले चले किधर!

थे थके पाँव, बढ गए किंतु

चल दिये उधर, मन हुआ जिधर!

पर जाने क्यों, मैं जिधर चला

मेरे सँग सँग चल दिया चाँद!

पीले गुलाब-सा लगता था

हल्के रंग का हल्दिया चाँद!

साथी था, फिर भी मन न हुआ

हल्का, हो गया भार दूना।

वह भी बेचारा एकाकी

उसका भी जीवन-पथ सूना!

क्या कहते, दोनों ही चुप थे,

अपनी अपनी चुप सहते थे!

दुख के साथी बस देख देख

बिन कहे हृदय की कहते थे!

था ताल एक; मैं बैठ गया,

मैंने संकेत किया, आओ,

रवि-मुकुर! उतर आओ अस्थिर

कवि-उर को दर्पण बन जाओ।

मैं उठा, उठा वह; जिधर चला,

मेरे सँग सँग चल दिया चाँद!

मैं गीतों में; वह ओसों में

बरसा औ’ रोया किया चाँद!

क्या पल भर भी कर सकी ओट

झुरमुट या कोई तरु ड़ाली,

पीपल के चमकीले पत्ते…

या इमली की झिलमिल जाली?

मैं मौन विजन में चलता था,

वह शून्य व्योम में बढता था;

कल्पना मुझे ले उड़ती थी,

वह नभ में ऊँचा चढ़्ता था!

मैं ठोकर खाता, रुकता वह;

जब चला, साथ चल दिया चाँद!

पल भर को साथ न छोड़ सका

एसा पक्का कर लिया चाँद!

अस्ताचलगामी चाँद नहीं क्या

मेरे ही टूटे दिल सा?

टूटी नौका सा डूब रहा,

जिसको न निकट का तट मिलता!

वह डूबा ज्यौं तैराक थका,

मैं भी श्रम से, दुख से टूटा!

थे चढे साथ, हम गिरे साथ,

पर फिर भी साथ नहीं छूटा!

अस्ताचल में ओझल होता शशि

मैं निद्रा के अंचल में,

वह फिर उगता, मैं फिर जगता

घटते बढते हम प्रतिपल में!

मैनें फिर-फिर अजमा देखा

मेरे सँग सँग चल दिया चाँद!

वह मुझसा ही जलता बुझता

बन साँझ-सुबह का दिया चाँद!

 

 

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