Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Gagan ne dhara se kaha ek din”,” गगन ने धरा से कहा एक दिन” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

गगन ने धरा से कहा एक दिन

 Gagan ne dhara se kaha ek din

 

गगन ने धरा से कहा एक दिन,

सिर्फ पत्थर बसे हैं तुम्हारे हृदय में!

झरे फूल कितने इसी धूल में,

पर कभी भी तुम्हें मोह करना न आता,

मिटे रूप कितने तुम्हारे कणों में,

कभी भी तुम्हें याद करना न भाता!

सदा अर्थियों की चितायें जलीं,

पर तुम्हें एक आँसू बहाना न आया,

सदा तुम मिटाती रही कि तुम पर

कभी वेदना का जमाना न आया!

न जाने तुम्हारा न नाता किसी से

किसी का तुम्हें साथ भाता नहीं है,

कि उर्वर तुम्हें जो बनाया प्रकृति ने

वही गर्व उर में समाता नहीं है!

सदा खेलती तुम रही जीवनो से,

न काँटे खटकते तुम्हारे हृदय में!

धरा कुछ हिली अब न बोलो गगन,

मै विवश हूँ कि मुझको दिखाना न आता,

सतह देखती रोशनी ये तुम्हारी,

उसे प्राण मन मे समाना न आता!

धधकती अनल को न देखा न देखी

करुण वारि-धारा छिपाये हुये हूँ,

इसी धूल की रुक्षता के सहारे

अरे सृष्टि का क्रम चलाये हुये हूँ!

मिटाया न अपने लिये हाय उनको,

कि जिनको खिलाय कभी अँक मे ले!

जनम औ’मरण बीच मैं ही पडी हूँ,

न जीवन जनम दे, मरण गोद ले ले!

कहो सुख कहूँ या इसे दुःख मानूँ,

बसा एक कर्तव्य मेरे हृदय में!

 

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