Hindi Poem of Pratibha Saksena “ Kiratin  ”,”किरातिन” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

किरातिन

Kiratin  

 

किस किरातिन ने लगा दी आग,

धू-धू जल उठा वन!

रवि किरण जिसका सरस तल छू न पाई

युगों तक पोषित धरित्री ने किया जिनको लगन से!

पार करते उन सघन हरियालियों को प्रखर सूरज किरण अपनी तीव्रता खो,

हो उठे मृदु श्याम वर्णी,

वही वन की नेह भीगी धरा, ओढे है अँगारे!

जल रही  है घास-दूर्वायें कि जिनको

तुहिन कण ले सींचते संध्या सकारे,

भस्म हो हो कर हवाओं में समाये!

जल गये हैं तितलियों के पंख, चक्कर काटते भयभीत, खग,

उन बिरछ डालों पर सजा था नीड़, करते रोर

गिरते देखते नव शावकों की देह जलते घोंसलों से!

और सर्पिल धूम लहराता गगन तक!

वृक्ष से छुट-छुट गिरीं चट्-चट् लतायें,

धूम के पर्वत उठे,

लपटें लपेटे, शाख तरु की,फूल, फल पत्ते निगलती!

भुन रहे जीवित, विकल चीत्कार करते जीव,-

जायेंगे कहाँ, वे इस लपट से उस लपट तक!

यहाँ तो इस ओर से उस ओर तक नर्तित शिखायें वह्नि की

लपलप अरुण जिहृवा पसारे, कर रहीं पीछा निरंतर!

और  हँसती है किरातिन,

जल रहा वन खिलखिलाती है

किरातिन!

 

 

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