Hindi Poem of Prayag Shukla “Striya lati thi milo door se bharkar ghade“ , “स्त्रियाँ लाती थीं मीलों दूर से भरकर घड़े” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

स्त्रियाँ लाती थीं मीलों दूर से भरकर घड़े
Striya lati thi milo door se bharkar ghade

खड़े थे कई बच्चे
तितर-बितर।
नहीं था पानी
बिजली नहीं थी।
कीचड़ था।

आंधी चलती थी।
बूंदें गिरती थीं।
रोती थीं कविता
की दुनिया में-
रात की नदियाँ।

घोंसले बनते थे
उजड़ते थे-

स्त्रियाँ लाती थीं
मीलों दूर से
भरकर घड़े।

बच्चियाँ मांजती थीं
सुबह से रात तक
बर्तन
दूसरों के।

आती-जाती थीं ट्रेनें।

नीम और पीपल थे-
कहानियाँ थीं
उनकी हज़ारों-हज़ार।

कोहराम थे।
खोए जाते थे
माता-पिता।

बैठे थे
गुमशुदा बच्चे,
चुपचाप।

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