Hindi Poem of Shiv Bahadur Singh Bhadoriya “  Nadi ka bahna mujhme ho”,”नदी का बहना मुझमें हो” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

नदी का बहना मुझमें हो

 Nadi ka bahna mujhme ho

 

मेरी कोशिश है कि-

नदी का बहना मुझमें हो।

तट से सटे कछार घने हों,

जगह-जगह पर घाट बने हों,

टीलों पर मन्दिर हों जिनमें-

स्वर के विविध वितान तने हों;

मीड़-मूर्च्छनाओं का-

उठना-गिरना मुझमें हो।

जो भी प्यास पकड़ ले कगरी,

भर ले जाए ख़ाली गगरी,

छूकर तीर उदास न लौटॆं-

हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी,

मच्छ मगर घड़ियाल-

सभी का रहना मुझमें हो।

मैं न रुकूँ संग्रह के घर में,

धार रहे मेरे तेवर में,

मेरा बदन काटकर नहरें-

ले जाएँ पानी ऊपर में;

जहाँ कहीं हो,

बंजरपन का मरना मुझमें हो।

 

 

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