जग-जीवन में जो चिर महान -सुमित्रानंदन पंत
Jag-Jeevan mein jo chir mahan – Sumitranand Pant
जग-जीवन में जो चिर महान,
सौंदर्य – पूर्ण औ सत्य – प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ!
जिसमें मानव – हित हो समान!
जिससे जीवन में मिले शक्ति,
छूटें भय, संशय, अंध – भक्ति;
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ!
मिज जावें जिसमें अखिल व्यक्ति!
दिशि-दिशि में प्रेम – प्रभा प्रसार,
हर भेद – भाव का अंधकार,
मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ!
मानव के उर के स्वर्ग-द्वार!
पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान
करने मानव का परित्राण,
ला सकूँ विश्व में एक बार
फिर से नव जीवन का विहान!