जग के उर्वर आँगन में -सुमित्रानंदन पंत
Jag ke urvark aangan mein – Sumitranand Pant
जग के उर्वर – आँगन में
बरसो ज्योतिर्मय जीवन!
बरसो लघु – लघु तृण, तरु पर
हे चिर – अव्यय, चिर – नूतन!
बरसो कुसुमों में मधु बन,
प्राणों में अमर प्रणय – धन;
स्मिति – स्वप्न अधर – पलकों में,
उर-अंगों में सुख-यौवन!
छू-छू जग के मृत रज – कण
कर दो तृण – तरु में चेतन,
मृन्मरण बाँध दो जग का,
दे प्राणों का आलिंगन!
बरसो सुख बन, सुखमा बन,
बरसो जग – जीवन के घन!
दिशि – दिशि में औ’ पल – पल में
बरसो संसृति के सावन!