अभिमान अच्छा नहीं
Abhiman Accha nahi
एक व्याकरण का पण्डित नाव में बैठा था| उसने मल्लाह से व्याकरण की बड़ी प्रशंसा की और फिर उससे पूछा – क्यों भाई, क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है?
बेचारा मल्लाह व्याकरण क्या जाने! उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर था| उसने कहा – पण्डितजी हम नहीं जानते कि व्याकरण क्या होता है|
व्याकरण के पण्डित ने कहा – मुझे बड़ा अफसोस है कि तुमने अपनी अब तक की उम्र यों ही गंवा दी| मल्लाह को यह सुनकर बड़ा बुरा लगा, लेकिन वह कुछ बोला नहीं|
संयोग की बात कि उसी समय बड़े जोर का तूफान आया| नाव ऊपर-नीचे होने लगी| मल्लाह ने पण्डितजी से पूछा – पण्डितजी महाराज, यह तो बताइए कि आपको तैरना आता है या नहीं?
उन्होंने कहा – नहीं तैरना तो मुझे नहीं आता|
मल्लाह ने कहा – महाराज तब तो आपकी सारी जिंदगी ही बर्बाद हो गई, क्योंकि नाव भंवर में पड़ गई है और डूबने वाली है| अपनी कला पर किसी को अभिमान नहीं करना चाहिए|