वह बुड्ढा -सुमित्रानंदन पंत Vah Budha – Sumitranand Pant खड़ा द्वार पर, लाठी टेके, वह जीवन का बूढ़ा पंजर, चिमटी उसकी सिकुड़ी चमड़ी हिलते हड्डी के ढाँचे पर। उभरी …
वे आँखें -सुमित्रानंदन पंत Ve Aankhe – Sumitranand Pant अंधकार की गुहा सरीखी उन आँखों से डरता है मन, भरा दूर तक उनमें दारुण दैन्य दुख का नीरव रोदन! …
संध्या के बाद -सुमित्रानंदन पंत Sandhya ke Baad – Sumitranand Pant सिमटा पंख साँझ की लाली जा बैठी तरू अब शिखरों पर ताम्रपर्ण पीपल से, शतमुख झरते चंचल स्वर्णिम …
चंचल पग दीप-शिखा-से -सुमित्रानंदन पंत Chanchal Pag Deep-Shikha se – Sumitranand Pant चंचल पग दीप-शिखा-से धर गृह,मग, वन में आया वसन्त! सुलगा फाल्गुन का सूनापन सौन्दर्य-शिखाओं में अनन्त! सौरभ …
आज रहने दो यह गृह-काज -सुमित्रानंदन पंत Aaj Rehne Do yeh Grah-Kaaj – Sumitranand Pant आज रहने दो यह गृह-काज, प्राण! रहने दो यह गृह-काज! आज जाने कैसी वातास, …
श्री सूर्यकांत त्रिपाठी के प्रति -सुमित्रानंदन पंत Shri Surya Kant Kripathi ke Prati – Sumitranand Pant छंद बंध ध्रुव तोड़, फोड़ कर पर्वत कारा अचल रूढ़ियों की, कवि! तेरी …
वायु के प्रति -सुमित्रानंदन पंत Vayu Ke Prati – Sumitranand Pant प्राण! तुम लघु लघु गात! नील नभ के निकुंज में लीन, नित्य नीरव, नि:संग नवीन, निखिल छवि की …
सांध्य वंदना -सुमित्रानंदन पंत Sandhya Vandana – Sumitranand Pant जीवन का श्रम ताप हरो हे! सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे! सूने जग गृह द्वार भरो हे! लौटे गृह …